स्वामी करपात्री ( Swami Karpatri )

Swami Karpatri
स्वामी करपात्री (1907-1982) भारत के एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हर नारायण ओझा था। वे हिन्दू दसनामी परम्परा के सन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम " हरिहरानन्द सरस्वती" था किन्तु वे "करपात्री" नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें 'धर्मसम्राट' की उपाधि प्रदान की गई।
स्वामी करपात्री का जन्म भारत के अवध क्षेत्र उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के भटनी कस्बे में हुआ था। वे विवाहित थे तथा जब सत्रह वर्ष की आयु में घर छोड़कर सन्यास लिया था तब उनकी एक पुत्री भी जन्म ले चुकी थी। वे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के शिष्य थे। स्वामी जी की स्मरण शक्ति 'फोटोग्राफिक' थी, यह इतनी तीव्र थी कि एक बार कोई चीज पढ़ लेने के वर्षों बाद भी बता देते थे कि ये अमुक पुस्तक के अमुक पृष्ठ पर अमुक रुप में लिखा हुआ है। उन्होने वाराणसी में "धर्मसंघ" की स्थापना की। उनका अधिकांश जीवन वाराणसी में ही बीता। वे अद्वैत दर्शन के अनुयायी एवं शिक्षक थे। सन् १९४८ में उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की स्थापना की जो परम्परावादी हिन्दू विचारों का राजनैतिक दल था।
आपने हिन्दू धर्म की बहुत सेवा की । आपने अनेक अद्भुत ग्रन्थ लिखे जैसे :- वेदार्थ पारिजात, रामायण मीमांसा, विचार पीयूष, मार्क्सवाद और रामराज्य आदि । आपके ग्रंथो में भारतीय परंपरा का बड़ा ही अद्भुत व् प्रामाणिक अनुभव प्राप्त होता है । आप ने सदैव ही विशुद्ध भारतीय दर्शन को बड़ी दृढ़ता से प्रस्तुत किया है ।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !