सई नदी के किनारे एक ऊंचे टीले पर इस अदभुद मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि श्रीराम जब अयोध्या से चले तो चार प्रमुख नदियों को पार करके वह चित्रकूट में पहुचे। गोमती, सई, गंगा एवं यमुना। इसके अलावा कई अन्य छोटी नदियां भी थी। गोमती को पार किया उन्होंने सुल्तानपुर में स्थित सीता कुंड से और उसके बाद सई नदी को पार किया बेल्हा देवी से। तत्पश्चात नदी के किनारे-किनारे चलते हुए वह पहुंचे एक ऊंचे टीले पर। यहाँ रात गुजारने से पहले उन्होंने बालू का एक शिवलिंग बनाया। जिसके कारण इसका नाम पड़ा बाबा बालूकेश्वरनाथ धाम। यहीं से उन्होंने शृंगवेरपुर के लिए प्रस्थान किया। भरत जब श्रीराम से मिलने के लिए उसी रास्ते का अनुसरण करते हुए चले तब वह भी यहाँ पहुंचे और रात्रि विश्राम किया। इस अवधि के दौरान उन्होंने बालू के क्षतिग्रस्त शिवलिंग के स्थान पर पत्थर का शिवलिंग प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किया और शृंगवेरपुर की तरफ निकल पड़े। ये कथा जन मानस में इतनी गहराई तक बैठ गई है कि आज भी दूर-दूर से लोग यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि, मलमास, सावन एवं सोमवार को यहाँ लोग इस अदभुद मंदिर में दर्शन करने के लिए उपस्थित होते हैं।
बाबा बालूकेश्वर नाथ, देव घाट, मोहनगंज, प्रतापगढ़ ( Baba Balukeshwarnath, Dev Ghat, Mohanganj, Pratapgarh )
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जाय बाबा बालूकेश्वर नाथ
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